नानक देव सतत यात्री थे। 27 साल की उम्र में ही उन्होंने 9 देशों की यात्राएं कीं। 150 से अधिक धर्मस्थलों का दौरा किया। उनके सहयात्री थे भाई मरदाना। पाकिस्तान में मरदाना की आज भी वंशावली चलती हैं। हैं मुस्लिम लेकिन गाते नानक के शबद हैं। सिंगापुर के रिसर्चर अमरदीप सिंह ने 15 वीं और 16 वीं सदी में नानक देव की यात्राओं की निशानी तलाशी है।
गुरु नानक देव ने ये यात्राएं व्यापार या दूसरे देशों पर कब्ज़े के लिए नहीं कीं। बल्कि शांति का पैगाम लेकर हर जगह गए। श्रीलंका, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत, इराक़, सऊदी अरब, बांग्लादेश और भारत।
अमरदीप सिंह की मां एबटाबाद और पिता मुज़फ्फराबाद के थे। दोनों ही पाकिस्तान में है। सिख साम्राज्य का 80 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान चला गया। 30 दिनों का वीज़ा मिला था। इतने दिनों में पाकिस्तान के 36 गांवों र शहरों का दौरा किया और एक किताब लिखी LOST HERITAGE:The Sikh Legacy in Pakistan (2016), उसके बाद अमरदीप फिर पाकिस्तान गए। इस बार 55 दिनों में 90 और शहरों, कस्बों का दौरा किया और दूसरी किताब लिखी जिसका नाम था The Quest Continues: Lost Heritage: The Sikh Legacy in Pakistan (2018).आंचल मल्होत्रा ने अमरदीप सिंह की किताब पर इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है।
पाकिस्तान के हारून ख़ालिद ने भी walking with Nanak नाम से एक बेहतरीन किताब लिखी है। हारुन के सामने सवाल था कि पाकिस्तान बनने के बाद पंजाब की स्मृतियों में नानक क्यों नहीं हैं, जबकि नानक उन इलाकों की सांस्कृतिक पहचान हैं। बस हारुन ख़ालिद नानक की निशानियों के पीछे चल पड़ते हैं और एक किताब बन जाती है।
गुरु नानक देव की सौम्यता और सहिष्णुता सबके किरदार का हिस्सा हो। नानक हमारे भीतर की हिंसक बहसों और टकरावों का समाधान हैं। आज उनकी जयंति के 550 साल हो गए। उनका ही प्रताप था कि भारत पाकिस्तान की सीमा पर दो गुरुद्वारों को जोड़ने वाला गलियारा बन गया। जब रास्तों पर पत्थर भर जाएं, कांटे बिछ जाएं तो गलियारा बेहतर विकल्प है। आज का दिन सभी को मुबारक।
नानक होना जीवन के अनुभवों का सार होना है
(ये लेख वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार के फेसबुक वॉल से लिया है। )