SC की तरफ से सारदा माइन्स को बड़ी राहत, कंपनी को खनन कार्य करने की अनुमति, फरवरी तक चुकाने होंगे 933 करोड़

सुप्रीम कोर्ट ने सारदा माइंन्स प्राइवेट लिमिटेड को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने कंपनी को उड़ीसा में खनन कार्य करने और 933 करोड़ रुपए 29 फरवरी तक पर्यावरण मुआवजे के तौर पर जमा करने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस बीआर गवई और सूर्यकांत की बेंच ने नवीन जिंदल की जीएसपीएल को ठकुरानी ब्लॉक खानों में उच्च गुणवत्ता के लौह अयस्क की ढुलाई करने की अनुमति भी दी।

कोर्ट ने 16 जनवरी को कहा था कि वह जिंदल स्टील एवं पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) को उसके ओडिशा में बने संयंत्र के लिए सारदा खदान से उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क की ढुलाई की अनुमति देने के खिलाफ नहीं है। उसने मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। एसएमपीएल को पर्यावरण संबंधी मंजूरी न लेने की वजह से 31 मार्च 2014 को बंद कर दिया गया था। एसएमपीएल नवीन जिंदल की जेएसपीएल को उच्च गुणवत्ता के लौह अयस्क की आपूर्ति करती थी।

कोर्ट ने साफतौर पर कहा है कि जेएसपीएल तब लौह अयस्क की ढुलाई कर सकता है, जब एसएमपीएल पर्यावरण के मुआवजे के तौर पर 933 करोड़ चुका देता है। इससे पहले कोर्ट ने एसएमपीएल से वचन लिया था कि वह पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में राज्य सरकार को 933 करोड़ रुपये देगी।

 

एसएमपीएल जिंदल की जेएसपीएल को करती है सप्लाई 

बता दें, एसएमपीएल जिंदल की जेएसपीएल को उच्च गुणवत्ता के लौह अयस्क की सप्लाई करती थी। यहां खनन  कार्य पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखते हुए 31 मार्च 2014 को बंद हो गया था। इससे पहले कंपनी की ओर से समिति ने कोर्ट को बताया था कि ठाकुरानी लौह आयस्क माइंन्स में खनन कार्य की अनुमति मिलने के बाद ही कंपनी एक महीने के भीतर मुआवजे के तौर पर रुपए जमा कर देगी। कंपनी को 2014 के बाद से किसी भी तरह की कोई कमाई नहीं हुई है।

सीईसी ने दी थी रिपोर्ट

सीईसी ने 8 मार्च 2019 को अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि पर्यावरण को ताक पर रखकर एसएमपीएल ने 2001-02 से 2010-11 तक 135,34,703 टन की भारी मात्रा में उच्च गुणवत्ता के लौह अयस्क का खनन किया था। इस दौरान कंपनी पर 933 करोड़ रुपए का मुआवजा बनता है।

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