बाबा भीमराव अंबेडकर की जयंती पर आओ आर्टिकल 15 के माध्यम से आयुष्मान की फिल्म की समीक्षा भी कर लें

कहब तो लग जई धक से...बड़े बड़े लोगन के बंगला दो बंगला....हमरे गरीबन के झोपड़ी जुल्म वा.... इन पंक्तियों के साथ मद्धम रोशनी के बीच शरू होती है, आर्टिकल 15 फ़िल्म की पटकथा की शुरुआत। आर्टिकल 15 एक ऐसा अधिकार जो हर भारतीय जनमानस को बराबरी का हक देता है।


फ़िल्म के नायक आयुष्मान खुराना आईपीएस अधिकारी अयान रंजन की भूमिका में हैं। इन्हें फ़िल्म के मध्यप्रदेश के लालगांव पुलिस स्टेशन का चार्ज दिया गया है। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी फिल्म के दृष्टांत मेट्रो सिटी से अलग गांव में बसे हिंदुस्तान की सामाजिक संरचना बयाँ करती है। फ़िल्म के डायलॉग किसी को आकर्षित और थोड़ी देर सोचने पर मजबूर कर देते हैं।


कहानी का सार है कि आर्टिकल 15 के इर्द गिर्द घूमती है।


अनुभव सिन्हा ने फ़िल्म के माध्यम से भारतीय समाज में आजादी के 70 साल बाद भी चल रहे भेदभाव की ओर इंगित किया है। इसमें फैक्ट्री में काम करने वाली 3 बच्चियों का सामूहिक बलात्कार किया जाता है, बल्कि दो को मारकर पेड़ पर लटका दिया जाता है।


अयान लालगांव आने के बाद अपनी प्रेमिका से फ़ोन पर बात करता है। इस दौरान वो बताता है कि कैसे लालगांव का समाज शहरी समाज से अलग है। यहां अलग ही दुनिया बस्ती है।


बच्चियों की हत्या को राजनैतिक रंग दिया जाता है। इस केस में उनके पिता को आरोपी बनाकर पेश किया जाता है। इस दौरान अयान पूरे मामले को भांप जाते हैं और वह तय कर लेते हैं कि मामले की तह तक जाएंगे। जब वह इस कुचक्र को भेदते हैं पाते हैं कि इसमें राज्य के मंत्री समेत थाने के लोग तक शामिल हैं। आयुष्मान इस फ़िल्म में एक ऐसे आईपीएस अधिकारी की भूमिका में हैं, जो असलियत सामने लाने के लिए किसी के दवाब में नहीं आता। आयुष्मान के अलावा जीशान आयूब, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा ने बेहतरीन अभिनय किया है। समाज के ताने बाने को जोड़े रखनेवाली यह फ़िल्म लजाबाब है। फ़िल्म  असलियत के बेहद करीब लाकर दर्शकों को सामने एक प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देती है। फ़िल्म को 5 सितारे में से 4.5 अपने खाते में रखने का पूरा हक है। बाकी 0.5 मैं अपनी नासमझी के लिए रख लेता हूँ।


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