विचार. चीन के वुहान शहर से निकले वायरस ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। इस वायरस ने एक तरफ दुनिया में इतना कोहराम मचाया हुआ, कि कई देशों की रफ्तार थम सी गयी है। दावों का खेल जारी है, लेकिन अगर मतों को माना जाए तो इस वायरस की सही जानकारी चीन से बेहतर कोई नहीं जानता है। अमेरिका अपनी कमजोरियों से लड़ रहा है, फिलहाल देखा जाए तो। दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क की इस हताशा को देख बाकी देश ज्यादा सजग हो गए हैं, वहीं चीन ने अपने देश से लॉक डाउन हटा दिया है।
मतों का खेल यह है, कि दो थ्योरी इस वक़्त कोरोना वायरस को लेकर चल रही है, पहली की ये वायरस चमगादड़ से फैला है, तो दूसरा यह कि इसे चीन ने जानबूझकर बनाया है। लेकिन सवाल वहीं आकर ठहर जाता कि चीन क्यों ऐसा जान लेवा वायरस बनायेगा जो उसके अस्तित्व पर भी खतरा हो। सवाल उठा है, तो इसका जवाब भी तलाशना होगा। चीन को अपनी बढ़ती जनसंख्या से कोई मोह फिलहाल दिखाई नहीं देता। वह अपने नागरिकों को वर्क फोर्स की संज्ञा से आंकता है। वहीं सितम्बर अक्टूबर में चीन और अमेरिका के बीच एक ट्रेड वॉर चल रहा था। दुनिया पर अपने बाजार को स्थापित करने का! सवाल को पुख्ता करती कई विशेषज्ञों की राय भी इस पक्ष में है कि शायद ने स्वघोषित विश्व युद्ध वायरस के माध्यम से छेड़ दिया है। मालिक हमेशा मालिक बनने के ख्वाब देखता है, यही वजह है कि देश आपसी प्रतिस्पर्धा में मानवता को भी ताक पर रख देते हैं। इधर भारत भी इस वायरस से अपनी अनकही जंग लड़ रहा है। अबतक भारत में 19000 के पार संक्रमितों का आंकड़ा फैल गया है। वहीं अमेरिका मौतों की गिनती लाखों में आंक चुका है। चीन दुनिया को एक बाजार की तरह देखता है। इस वायरस ने सबसे ज्यादा चोट सभी देशों की आर्थिक स्थिति पर सबसे ज्यादा की है।
वहीं फ्रांस के वैज्ञानिक और नोबेल प्राइज विजेता ल्यूक माउंटेनियर ने कहा है कि यह वायरस लैब में बनाया गया है। यह साजिशन ऐसा किया गया है। भारत के शोधकर्ताओं ने भी इसी तरह का एक दावा किया था लेकिन उनकी रिपोर्ट को दबा दिया गया है। अगर चीन ने किसी मंसूबे के साथ इस वायरस को बनाया तो यह तय है कि कभी न कभी यह सच्चाई दुनिया के सामने आ जायेगी, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो शायद प्रकृतिक तौर पर इसे आपदा मानकर सम्पूर्ण मानवजाति जीने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकल लेगी।
भारत कैसे लड़ेगा कोरोना से
भारत के सामने सबसे बड़ी मुश्किल सिर्फ कोरोना नहीं है। पिछले कुछ वक्त से देश आर्थिक स्थिती से जूझ ही रहा था। भारत की ग्रोथ रेट पांच प्रतिशत से भी कम आंकी गई थी। लेकिन अब देखें तो कोरोना ने पूरे मुल्क में लॉकडाउन की स्थिती पैदा कर दी है। कारखाने बंद हैं। सारे काम रूक गए हैं। सरकार ने देशव्यापी फंडिंग जुटा कर इस आपदा से लड़ने की कोशिश की है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पहले से ही सवाल है। कृषि प्रधान देश होने के नाते एक बड़ी आबादी इसकी गांव में बसती है। वहीं जनसंख्या के मामले में देश दुनिया के दूसरे नंबर पर आता है। फिलहाल वर्ल्डबैंक की तरफ से ही देश को आर्थिक मदद मिल पाई है। हालांकि देश के सहयोग में जनता का एक बड़ा भाग सेवा में लगा हुआ। जिसको जो मदद करते बन रही है वह कर रहा है। हालांकि सरकार को एक सिस्टम तैयार करना चाहिए जिससे इस लंबे दौर तक चलने वाली महामारी से पार पाया जा सके। आखिर में सवाल यही उठता है कि दो शक्तिशाली मुल्क के बाजारू लड़ाई ने दुनिया को इस अंधे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, या ये आघोषित एक और विश्वयुद्ध की शुरुआत है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)