खोदी इकॉनोमी तो निकली शराब, हम समझते थे कि आर्थिक संरचना देश चला रही है


लेखक. (सुयश भट्ट)


''न तुम होश में हो न हम होश में हैं 
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी'' 


बशीर बद्र का ये शेर कई मायनों में हालात पर तंज है। लगता है सरकार से लेकर जनता तक कोरोना की महामारी में होश में नहीं है। फिलहाल फैसलों पर प्रतिक्रिया तो यही बता रही है। लॉक डाउन 3.0 और एक फैसला जिसने सोशल मीडिया से लेकर जनता की प्रतिक्रिया तक खूब चर्चा बटौरी ? शराब की दुकान खोलने की अनुमति ! आखिर क्यों सरकार को जरूरत आन पड़ी कि वो दुकान न खोलकर शराब की दुकानों को खोले ? इसकी वजह है राज्यों को इस क्षेत्र से काफी रेवेन्यू आता है, इतना की वो साल में बदलकर 24% रेवेन्यू का हिस्सा होता है। आइए समझते हैं, इस फैसले के पीछे की वजह ....पंजाब के मुख्यमंत्री ने केंद्र  से शराब की दुकान खोलने की मांग की थी। इसे केंद्र ने ठुकरा दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनकी सरकार को 6 हजार 200 करोड़ रुपए की कमाई एक्साइज ड्यूटी से होती है। इतना नुकसान वो कहाँ से भरेंगे। वो तो एक रुपये नहीं देने वाले। वहीं पीएम मोदी का बयान भी इस फैसले के बाद चर्चा का विषय बना हुआ है, इसकी न्यूज पेपर की कॉपी भी शेयर की जा रही है। वहीं शिवराज सिंह चौहान के एक बयान का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल है, उसे आप देख सकते हैं। 



सरकार को इससे कमाई होती है, लेकिन कैसे तो इसे समझ लें। स्टेट जीएसटी, लैंड रेवेन्यू, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट-सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी और बाकी टैक्स का हिस्सा ही रेवेन्यू में जुड़ता है। शराब और पेट्रोल को जीएसटी से बाहर रखा गया है। इनकी एक्ससाइस सरकार हाथ में है। राज्य सरकारों को सबसे ज्यादा कमाई स्टेट जीएसटी से होती है। इससे औसतन 43% का रेवेन्यू आता है। उसके बाद सेल्स-वैट टैक्स से औसतन 23% और स्टेट एक्साइज ड्यूटी से 13% की कमाई होती है। पिछले साल ही शराब बेचने से राज्य सरकारों को 2.5 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिला था।



इन वजहों से आप समझ सकते हैं कि शराब की दुकान खोलना क्यों जरूरी है
दरअसल, राज्य सरकारों की कमाई का मुख्य सोर्स शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी है।  यूपी-ओड़िशा को शराब के बिकने से 24% की कमाई होती है, वहीं, मिजोरम-नागालैंड में सिर्फ 1% कमाई होती है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो देश में औसतन हर व्यक्ति 5.7 लीटर शराब हर साल पी जाता है। बिहार और गुजरात में शराबबंदी है, इन दोनों राज्यों की एक्साइज ड्यूटी से कोई कमाई नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में 2016 के दौरान शराब पीने से 2.64 लाख से ज्यादा मौते हुई थीं। इसमें अधिकतर लिवर सिरोसिस से मारे गए थे। वहीं बाकि बचे हुए नशे की हालात में सड़क हादसों में मारे गए थे। 



क्या कहती है सरकारी चेतावनी


असल में सरकार कहती तो है कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है लेकिन कभी शराब पर प्रतिबंध कानून नहीं बन पाया। न ही सरकारें इसको लेकर कुछ बात करती हैं। इस समय सरकार का प्राथमिक काम महामारी से निपटना है लेकिन आर्थिक स्थिती के मोर्चे पर खुद की सरकारी चेतावनी को अनदेखा कर शराब की दुकाने खोलने के आदेश दे दिए गए। इसके पीछे तर्क यह कि रेवेन्यू बढ़ाना प्राथमिकता है। उद्योगपति रत्न टाटा का बयान मानवीय संवेदना को समझते हुए जरूरी प्रतीत होता है कि साल 2020 कमाने का नहीं जान बचाने का वक्त है। क्या सरकार को कम रेवेन्यू और आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए नए तरीके इजात नहीं करने चाहिए ? एक सिस्टम जिससे सभी नुकसान की भरपाई होनी  चाहिए। फिलहाल तो शराब की दुकाने खोलने के फैसलों से तय होता है कि सरकार के पास एक वैकाल्पिक सिस्टम नहीं है और अगर है भी तो वह उस पर काम नहीं करना चाहती। यहां एक तरफ कोरोना महामारी से जूझ रहे देशों ने नए सिस्टम अपना कर महामारी से पार पाया है, वहीं भारत अब अपनी 2 महीने के मेहनत पर पानी फेर सकता है।    



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