सुदर्शन व्यास. मुझे एक बात समझ नहीं आती कि यदि कोई व्यक्ति कोरोना पॉज़िटिव आ भी गया तो उसे या उसके परिवार को हेय दृष्टि से क्यों देखा जाता है ? उसे ऐसे क्यों प्रस्तुत किया जाता है जैसे उससे कोई गुनाह हुआ हो ?
विडम्बना यह है आज लगभग हर व्यक्ति पत्रकार बना बैठा है। सोशल मीडिया पर इस तरह के विडियो/नाम/फ़ोटो ऐसे आग की तरह फ़ैलाए जा रहे जैसे उस परिवार ने कोई बड़ा गुनाह कर दिया है। ये भी किसी लिंचिंग से कम कृत्य नहीं है।
ऐसे समय में पीड़ित परिवार या मरीज़ को सम्बल की ज़रूरत है, मानसिक रूप से सहयोग की ज़रूरत है, इसे छोड़ सोशल मीडिया पर उसके बारे में तमाम बातें लिखकर मानसिक प्रताड़ित किया जाना मानवीयता की निशानी तो क़तई नहीं है।
वैसे भी किसी को मरने या बीमारी में रहने का शौक़ नहीं है और न ही कोई ऐसा जानबूझकर करेगा। वैसे भी कोरोना कोई प्रत्यक्ष व्यक्ति या ऐसी अभिव्यक्ति नहीं है जिसे देखकर दूर भगाया जाए। यह अनजाने में या भूलवश भी किसी को हो सकता है।
सोशल मीडिया पर लोग मरीज़ और उससे सम्बंधित परिवार के फ़ोटो और विडियो धड़ाधड़ साझा करके आख़िर क्या जताना चाह रहे हैं ? संवेदनाएँ क्यों मरती जा रही है ? कभी सोचकर देखिएगा कि उस परिवार या इस व्यक्ति पर क्या गुज़र रही होगी जब आप उसकी इस बीमारी के बारे में इस तरह प्रचार कर रहे हैं जैसे उससे कोई बड़ा गुनाह हो गया हो ?
और जो बुद्धिजीवी ऐसे काम को समाजसेवा या जागरूकता का नाम दे रहे हैं उनसे पूछना चाहूँगा कि यदि उनके साथ (भगवान न करे हो) ऐसा हुआ हो तो वे कैसा महसूस करेंगे ? यदि मोबाइल और सोशल मीडिया पर ही समाजसेवा करने का शौक़ है तो इस बीमारी से निजात या बचने सम्बन्धी जानकारी डालिए, किसने रोका है ?
बेवजह, किसी को समाज के सामने गुनहगार की तरह खड़ा कर देना कौन सी समाजसेवा है ? यह कैसी मानसिकता है कि जब वह व्यक्ति या उसका परिवार कलको बाज़ार में जाएगा तो लोग उसे शक़ की निगाह से देखें ? और क्यों देखें ? इसलिए कि उन्हें एक वायरस ने जकड़ लिया था। क्या इस देश में बीमार होना या किसी वायरस की चपेट में आना भी गुनाह है ? और यदि ये गुनाह है तो गुनाह यह भी है कि आप किसी व्यक्ति की छवि/इज़्ज़त/मान/मर्यादा को लेकर सवाल खड़े कर रहे हो ?
वैसे भी प्रशासन का स्पष्ट आदेश है कि कोरोना से सम्बंधित पुष्ट ख़बर शासन/प्रशासन द्वारा ही प्रेषित होगी, इसके बावजूद स्वघोषित पत्रकार या जागरूक नागरिक बनने का ढोंग भी गुनाह है, जिसकी सज़ा प्रशासन ने मुकम्मल भी की है।
सोशल मीडिया पर जो लोग बग़ैर ठीक से पढ़े/पुष्ट किए/समझे ऐसी बातें धड़ाधड़ फ़ोरवर्ड करके जो लोग अपनी जागरूकता की घोषणा खुद ही करने का प्रयास कर रहे है, वे लोग असल में समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं। उन्हें इतना तक भान नहीं कि उनके इस दूषित प्रयास से क्या माहौल बन रहा है?
विनम्र निवेदन है शासन/प्रशासन/चिकित्सकों की तरह पत्रकारों की भी एक जमात है जो आपको सही और पुष्ट जानकारी सहज रूप से घर बैठे उपलब्ध करवा रही है। कृपया ख़ुद पत्रकार बनने की कोशिश न करें। मनुष्य हैं तो भावनाओं और ख़ासकर मानवीयता का ख़्याल करें।
जागरूक रहें। अफ़वाह न फैलाएं। दूसरों की इज़्ज़त/मान/निजता का भी ख्याल रखें। किसी के कठिन समय में उसे सम्बल नहीं दे सकते तो उसे समाज के सामने बेवजह इतना भी गुनहगार न बनाएँ कि वह समाज से नज़रें न मिला पाएँ। कृपया सोशल मीडिया लिंचिंग बंद करें।
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