सीहोर । शासन-प्रशासन के तमाम दावों को धत्ता बताते हुए जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के लिए हाहाकारी क्रंदन सुनाई देने लगा है। शहरी क्षेत्रों में तो कुछ हदतक जलप्रदाय योजनाओं के माध्यम से पानी की सप्लाई सुचारू बनाए रखने की तो कवायद की जा रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां नल-जल योजना दम तोड़ चुकी है तो वही ग्रामीण महिला, पुरूषो को पीने के पानी के साथ साथ मवेशियों की प्यास बुझाने और निस्तार के लिए पानी का इंतजाम करने के लिए रात-दिन एक करने को मजबूर होना पड़ रहा हैं। जिला मुख्यालय के नजदीकी गांवों मे ही जब पानी के लिए हाय तोबा मच रही हैं तो जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में क्या हालात होंगे इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता हैं।
दावे तो बहुत किए नही बचाया पानी
इसबार कमजोर मानसून होने और जलग्रहण क्षेत्रों में नाममात्र की बारिश होने से जिले के अधिकांश जलस्रोतों में पर्याप्त पानी की भंडारण नही हो सका था । जलस्रोतों में जो पानी था भी तो उसे देखकर प्रशासन जल संकट से निपटने के दावे तो बहुत किए गए, लेकिन इन जलस्रोतो में जितना भी पानी था उसे बचाने के रत्तीभर भी प्रयास नही किए गए और किसानों द्वारा इन जलस्रोतों में मोटर पंप लगाकर पानी चोरी करते हुए इन्हें खाली करने में कोई कसर नही छोड़ी जिसका खामियाजा गर्मी के इनदिनों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले रहवासियों को जलसंकट के रूप में भुगतना पड़ रहा हैं। ग्रामीण क्षेत्रो में तो ग्रामीण महिलाए अपने सिर पर बर्तन रखकर दो से तीन किलोमीटर दूर स्थित खेतों में लगे नलकूपों से पानी भरकर लाने को मजबूर हो रही हैं। ऐसे में यदि बिजली चली जाती है तो इन ग्रामीण महिलाओं को बिजली आने तक घंटो इंतजार करना पड़ता हैं। बिजली आने पर ही वह अपने पानी के बर्तन भरकर ला पाती हैं।
नदी, तालाब वाले गांव है प्यासे
जिला मुख्यालय के एकदम नजदीकी गांव जहां पर नालों पर बंधान होने और तालाबों का क्षेत्र होने के बाद भी इन गांवों के विशेषकर पिपलिया मीरा, तकीपुर, चंदेरी, बडऩगर, जहांगीरपुरा, नयापुरा, हसनाबाद ऐसे कुछ गांव है जो जिला मुख्यालय से सटे हुए है इन गावों मेंं भी इनदिनों ग्रामीण जल संकट से जूझ रहे है और दूरस्थ जल स्रोतों से पानी लाना उनकी मजबूरी बनी हुई हैं।
दो दिन के अंतराल मिल रहा पानी
जिला मुख्यालय पर शहरवासियों को पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए नगरपालिका द्वारा प्रतिदिन काहिरी बंधान पेयजल के लिए आरक्षित भगवानपुरा और जमोनिया जलाशय से प्रतिदिन 22 लाख लीटर पानी लिया जाता है सर्वाधिक 10 लाख लीटर पार्वती नदी स्थित काहिरी बंधान से तथा 6 -6 लाख लीटर पेयजल के लिए आरक्षित जमोनिया और भगवानपुरा तालाब से लिया जा रहा हैं । ताकि लोगों को पर्याप्त पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकें, लेकिन अन्य जलस्रोतों की तरह इन जलस्रोतो में उपलब्ध पानी की चोरी रोकने के लिए समुचित इंतजाम समय पर नही किए जाने की वजह से इन जलस्रोतों का स्तर भी तेजी से घटता चला गया। नगरपालिका द्वारा प्रतिदिन 22 लाख लीटर पानी शहरवासियों को उपलब्ध कराया जा रहा है । इससे अनुमान लगाया जा सकता हैं कि शहर में हालात कैसे हैं।
खरीद रहे महंगा पानी
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पानी के लिए दो से तीन किलोमीटर जाना पड़ रहा है तो वही शहर में नगरपालिका द्वारा दो दिन के अंतराल पर पानी प्रदाय किया जा रहा है तो ऐसे में अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोगो को दूरस्थ स्थित जलस्रोतों से सायकल, दो पहिया वाहनों और आटों बने से पानी भरकर लाना मजबूरी बन चुका हैं या फिर शहर में चल रहे निजी टेंंकर चालकों से 5 से 8 रूपए प्रति 15 लीटर की केन पानी खरीदना पड़ रहा हैं। प्रशासन को जिले में पान की किल्लत का अंदेशा काफी पहले से हो चुका था और कलेक्टर द्वारा समय-समय पर बैठक आयोजित कर पीएचई और जल संसाधन विभाग को आसन्न जल संकट से निपटने के लिए निर्र्देश भी दिए जाते रहे । बावजूद इसके जिलेवासी गर्मी के इन भीषण दिनों में बूंद-बूंद पानी के लिए जद्दोतजहद करने को मजबूर हो गए । कलेक्टर साहब पानी के संकट से निपटनेके लिए निर्देश ही जारी करते रहे, लेकिन पूर्व की तरह इस वर्ष शहर के आस-पास पानी से भरपूर जलस्रोतों के अधिग्रहण करने की कार्रवाई से भी बचते रहे। पानी से भरपूर इन जलस्रोतों अधिग्रहण कर लिया जाता तो नगरपालिका के टेंकरों से शहर वासियों की प्यास बुझाई जा सकती थी ?
इनका कहना है
शहर में जलप्रदाय सुचारू बनाए रखने के लिए दो दिन के अंतराल पर पार्वती नदी स्थित काहिरी बंधान से प्रतिदिन 10 लाख लीटर तथा 6-6 लाख लीटर पानी जमोनिया और भगवानपुरा से लेकर शहर मेें वितरित कर रहे हंैं।
रमेश वर्मा, सहायक यंत्री
नगरपालिका सीहोर