संपादकीय| मोहल्ले की एक बुजुर्ग दादी ने पूछा, बेटा सावन मास में बिना पंडित के अभिषेक होता है?
मैंने बिना सोचे समझे कह दिया, नहीं! जवाब जारी रखते हुए कहा कि दरअसल जैसे अन्य काम करने के लिए अन्य कामगरों की जरूरत पड़ती है, वैसे ही पंडित जी की जरुरत भी इस तरह के कार्यों में पड़ती है। पंडित जात नहीं है। शास्त्रीय विद्याओं के जानकार पंडित कहला सकते हैं।
दादी मुस्कुराई और कहीं अपने गांव में एक शिव भक्त पण्डित इस तरह की बात कर सारे पंडितों को उनके नित नैमित कार्यों से घर बैठा रहे हैं।
थोड़ा हिचक के साथ बोला, दादी वर्चुअल दुनिया में बहुत कुछ एडवांस हुआ है, उसमें अज्ञान भी... निपट अज्ञानी भी .
भगवान राम को जब रामेश्वरम की स्थापना करनी थी, तो महापंडित रावण को बड़ी आदर के साथ पूजन कार्य हेतु बुलाया गया था, शिवलिंग स्थापित कर अभिषेक किया था। भगवान राम चाहते तो बिना पंडित के अभिषेक कर देते। उनको कौन दंड देता, लेकिन सामाजिक समरसता भिन्न न हो इसलिए उन्होंने अपना धर्म कर्म निभाया। शास्त्र संबंधी प्रश्न अक्सर शास्त्रीय तर्कों से ही हल किए जाते हैं।
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तेसी..!!
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(यह एडिटोरियल बदलती सामाजिक परिस्थितियों में हो रहे बदलावों पर लिखें जा रहे हैं। )
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